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सरयू
सन् 1991 में सरयू नदी काव्य को मानस संगम कानपुर द्वारा प्रकाशित कराया गया, जिसमें डा• अनन्त ने सरयू के उद्गम से लेकर गंगा-मिलन तक की कथा को प्रबन्ध काव्य-बद्ध किया है।
सरयू सर्ग के प्रारम्भ में कवि ने 'पावन है तेरी लहर-लहर' नामक एक गीत तथा 'सरयू तू निराकार ब्रह्म है' शीर्षक से तीन छन्दों में सरयू की वन्दना की है। प्रस्तुत काव्य की प्रमुख नायिका सरयू है जो अपने विषय में स्वयं सब कुछ कहती है। युग-साक्षी की भाँति उसने जो कुछ भी देखा, अनुभव किया, उसी का वह वर्णन करती है। उसमें हर्ष की उत्फुल्लता भी है और दुख के आँसू भी।
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