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मैं कृष्णा हूँ
नदी विषयक काव्यों की सुदीर्घ परम्परा की श्रंखला में 'मैं कृष्णा हूँ' का स्थान विशिष्ट है जिसका प्रकाशन सन् 1991 में हुआ। छह सर्गों में विभाजित यह काव्य-कृति कृष्णा की समग्रता को उद्भाषित करती है। महानदी कृष्णा के दुकूल दक्षिण भारत की सभ्यता एवं संस्कृति के उद्भावक, सम्पोषक ओर सम्वाहक है। महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा आन्ध्र प्रदेश में उसे वही जन-श्रद्वा था महत्व प्राप्त है, जो भागीरथी को उत्तर प्रदेश, बिहार एवं बंगाल में।
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