पंचगंगा
ताम्रपर्णी, शिप्रा, चर्मण्वती, ब्रह्मपुत्र और जय जाह्नवी के समवेत नदी काव्य 'पंचगंगा' को डा• अनन्त ने सन-1997 में राष्ट्रभारती के साहित्य मंदिर में निवेदित किया है। उनका नदी-यज्ञ अतीव पावन एवं प्रेरक है और इसे राष्ट्र-यज्ञ में समाहित किया जा सकता है। पचगंगा नदी महाकाव्य के द्वारा अनन्त ने राष्ट्र के पुरातन सांस्कृतिक गौरव को तो मुखर किया ही है, अधुनातन विश्व की सबसे बड़ी और भयावह समस्या पर्यावरण प्रदूषण को भी यथार्थ रूप में उभारा है तथा उसके समाधान भी सुझाये हैं| उनका मानवतावाद, समतावाद एवं राष्ट्रवाद परस्पर विरोधी न होकर परस्पर सहयोगी है तथा आज की विजातीयतावादी, पार्थक्यवादी, संकीर्णतावादी क्षुद्र राजनीति के युग में प्रेरक भी है और उपयोगी भी।
नदी काव्य पूर्व-पश्चिम एवं उत्तर-दक्षिण के भारतीय नागरिकों की सांस्कृतिक भावनाओं को परस्पर संयोजित करने में सम्बन्ध सेतु की भूमिका निभायें-यही कवि का अभीष्ट है।