top of page

डाॅ• अनन्तराम मिश्र 'अनन्त': जीवन एवं व्यक्तित्व-परिचय (18/09/1956 to 24/07/2017)

    

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

     

 

 

 

 

     

 

 

img447.jpg

                                                    उत्तर प्रदेश के पश्चिमांचल में स्थित जनपद हरदोई अपने साहित्यिक वैभव के लिए सर्वत्र विख्यात है। एक ओर ऋषि-मुनियों की तपोभूमि नैमिषारण्य और दूसरी ओर पौराणिक-ऐतिहासिक वसुन्धरा कान्यकुब्ज का प्रतिवेशी यह जनपद मध्य युग्म में गुलाम नबी 'रस्लीन' मधनायक, रसखानि, देव, सम्मन, शीतल इत्यादि से तथा आधुनिक काल में डाॅ• रघुवंश, डाॅ• जगदीश गुप्त, डाॅ• शिवबालक शुक्ल, डाॅ• लक्ष्मी शंकर मिश्र 'निशंक', वचनेश त्रिपाठी इत्यादि यशस्वी साहित्यकारों से अपने शास्वत गौरव का ध्वज समुन्नत किये हुए है। इसी जिला के प्राचीन कस्बा शाहाबाद का एक मोहल्ला है- पाठकाना जिसे पाठक ब्राह्मणों ने बसाया था। इसमें आज भी अधिकांश कान्यकुब्ज ब्राह्मण ही निवास करते हैं। डाॅ• अनन्त के पूर्वज अनेक पीढ़ियों पहले कन्नौज के 'ग्वालमैदान' मोहल्ले से आकर बस गये थे, जिनके वंशज धर्मनिष्ठ द्विज श्री विश्वम्भर दयालु मिश्र के परिणीता श्रीमती सरला मिश्र ने विक्रम संवत 2013 (सन् 1956) ई0 के भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्दशी को एक प्रतिभाशाली पुत्र को जन्म दिया। भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी को 'अनन्त चतुर्दशी' भी कहते हैं, अतः भाग्यशाली शिष्य अपने साथ एक सुन्दर अभिधान भी लेकर आया- 'अनन्त'। अनन्त के पीछे राम शब्द जोड़कर मिश्रदम्पति ने निश्चय ही अपनी भक्ति निष्ठा का परिचय दिया है।

बालक अनन्तराम इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा अपने पास-पड़ोस के विद्यालयों में अर्जित करने के पश्चात कानपुर विश्वविद्यालय में सन् 1977 ई0 से सन् 1979 ई0 एवं सन् 1981 में क्रमशः हिन्दी और संस्कृत से स्नात्कोत्तर परिक्षाएं प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण करके शिक्षित समाज को अपने प्रतिभ ऐश्वर्या का बोध कराया। अनन्त ने सन् 1987 ई0 में हिन्दी-जगत के अधिकारी विद्वान डाॅ• जगदीश गुप्त के निर्देशन में लिखित 'कालिदास-साहित्य और रीतिकाव्य-परम्परा : प्रेरणा एवं प्रभाव' शोध-प्रबन्ध पर पीएच•डी• की उपाधि प्राप्त की। डाॅ• मिश्र के पूरे शैक्षणिक जीवन में विशेष उल्लेख्य बात समस्त परीक्षाएँ व्याक्तिगत छात्र के रूप में देकर, प्रथम श्रेणी में उनको उत्तीर्ण किया तथा न केवल पाठ्यक्रम की पुस्तकों का, अपितु भारतीय वाड्मय का भी नियमित अध्ययन-अनुशीलन करते रहे। उनके स्वाध्याय का क्रम आज भी अटूट और अभंग है। संस्कृत भाषा, व्याकरण एवं साहित्य ही उनकी शिक्षा का मूलाधार रहा तथा प्रत्येक परीक्षा में संस्कृत विषय में उनको विशेष योग्यता वाले अंक भी प्राप्त हुए। 

 

डाॅ• अनन्त अध्यापन-कार्य इण्टर के बाद से ही करने लगे तथा अर्ह होने पर 4 जुलाई सन् 1981 ई• में गोला गोकरणनाथ-खीरी के केन ग्रोअर्स नेहरू पोस्टग्रेजुएट काॅलेज (कानपुर विश्वविद्यालय) के हिन्दी प्राध्यापक पद पर उनकी नियुक्ति हो गयी और सम्प्रति वे उक्त संस्था में ही प्रोन्नत होकर प्रवाचक (रीडर) पद पर अपनी सेवायें अर्पित करते रहे तथा सत्र २०१४-१६ में वे महाविद्यालय के कार्यवाहक प्राचर्य भी रहे। नगर में जहाँ उनका सौम्य व्यवहार एवं गरिमा-पूर्ण वैदुष्य प्रशंसित हैं, वही महान विद्यालय में अपने दायित्व-बोध तथा हिन्दी भाषा एवं साहित्य का प्रभावी अध्यापन भी विद्यार्थियों में शलाघा का विषय है। शिक्षणेतर कार्याें में काॅलेज-पत्रिका 'मनीषा' के हिन्दी-विभाग का सम्पादन, राष्ट्रीय सेवा योजना का कार्यक्रम-अधिकारीत्व, सांस्कृतिक समिति का सदस्यत्व तथा कूटा (शिक्षक संघ ) इकाई के अध्यक्ष/मन्त्री के प्रभार वे पूरी निष्ठा तथा बुद्धि-कौशल पूर्वक निष्पादित करने के अनुभवों से सम्पन्न हैं। पिछले दो दशकों में मिश्र जी अखिल भारतीय साहित्यकार के रूप में तो उभरकर राष्ट्रीय पटल पर आये ही हैं, शिष्यवत्सल प्राध्यापक, प्रबुद्ध नागरिक, कुशल कार्यक्रम-आयोजक और अच्छे व्यक्ति के रूप में भी उन्होंने अपनी स्पृहणीय छवि समाज में स्थापित की है।


    कुम्हरावाँ (लखनऊ) निवासी सुपरिचित ओजस्वी कवि श्री ओम प्रकाश मिश्र प्रकाश की पुत्री शशि से अनन्त का विवाह 24 मई, सन् 1978 ई• में हुआ, जिनसे चि• अमितांशु और आयुष्मती अंकिता-दो संतानें हुईं। एक ओर मिश्र जी के जीवन में प्रभूत परिश्रम तथा कठिन संघर्ष बाल्यकाल से ही व्याप्त रहे दूसरी ओर थोड़े-थोड़े समयान्तराल पर प्रिय जनों के निधन के असह्य शोकाघात भी उन्हें सहने पड़े, जिनकी अनुगूँज उनके साहित्य में वैराग्य-व्यथामूलक प्रसंगों में मिलती है तथा 'छन्द ये मेरे' के 'क्षण ऐसे भी आते कभी कभी' (पृष्ठ-43 से 46) शीर्षक सवैयों में तो पूर्ण उत्कर्ष के साथ अभिव्यक्त है। 16 अप्रैल, सन 1982 ई• को उनकी पूज्य माँ का स्वर्गवास हो गया। माता के शोक-संताप से वे अभी पूर्णतः उबर भी नहीं पाये थे कि दुर्वैव ने 17 जून, सन् 1985 ई0 में उनकी पत्नी को भी भगवान् का प्यारा बना दिया। 23 मई, सन् 1986 ई0 में मिश्र जी का पुनर्विवाह लखीमपुर-निवासी स्व• विश्वम्भर दयालु दीक्षित (एडवोकेट) की कनिष्ठा पुत्री 'प्रीति' के साथ सम्पन्न हुआ, इनसे 3 सन्तानें हुईं जिनमें से प्रथम सन्तान 'जाग्रति' 30 मार्च, सन् 1990 ई• में मात्र डेढ़ वर्ष में ही चल बसी। इसके बाद हुए-चि• दिव्यांशु और हर्षिता। 29 जुलाई, सन् 1995 में अनन्त जी के पिता भी दिवंगत हो गये। इस से पूर्व उनकी दो बड़ी बहनें भी परलोक सिधार चुकी थीं। अब परिवार में केवल एक बहन उनसे बड़ी हैं जो शुक्लागंज(उन्नाव) में विवाहित हैं। शेष तीन भाइयों और दो बहनों से मिश्र जी बड़े हैं। अपनी दो अनुजाओं के विवाह संस्कार करके उन्होंने ज्येष्ठपुत्र होने के दायित्व को भी बखूबी निभाया है तथा शाहाबाद (हरदोई) में पैतृक-निवास के अतिरिक्त अपनी कर्मभूमि गोला गोकर्णनाथ में भी निजी आवास बनवा लिया है। इस प्रकार अनन्त जी जीवन के अनेक उतार चढ़ाव देखते हुए कर्मठ, जीवंत एवं जाग्रत जीवन जिए तथा साठ वर्ष के अपने जीवनकाल में ही उन्होंने अपने वैयक्तिक और साहित्यिक क्षेत्रों मे इतना कुछ कार्य किया जो अपेक्षाकृत लम्बी आयु पाने वाले भी विरल ही कर पाते हैं।
  
        अनन्त जी जन्मजात संस्कारी कवि है उनके साहित्य के सृजनांकुर सन् 1966 ई• से ही प्रस्फुटित हो चले थे। आठ वर्ष तक एकान्त साधना के अनन्तर उन्होंने विद्वज्जनों से भेंट-वार्ताएँ तथा जनपदी साप्ताहित पत्रों में रचनाएँ देना भी प्रारम्भ कर दिया। प• श्री नारायण चतुर्वेदी, सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा, डाॅ• राम कुमार वर्मा, भगवती चरण वर्मा, सोहन लाल द्विवेदी, डाॅ• मुंशीराम शर्मा 'सोम', बंशीधर शुक्ल, डाॅ• जगदीश गुप्त, डाॅ• लक्ष्मीशंकर मिश्र 'निशंक', अमृतलाल नागर, केदारनाथ मिश्र 'प्रभात', आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री, आरसी प्रसाद सिंह, श्याम नारायण पाण्डेय, आचार्य क्षेमचन्द्र 'सुमन', डाॅ• शिवमंगल सिंह 'सुमन', गोपालदास 'नीरज', रामशंकर गुप्त 'कमलेश', प्रो• सिद्धिनाथ मिश्र इत्यादि मूर्धन्य मनीषी कवि-साहित्यकारों से मिश्रजी समय-समय पर दिशा-निर्देष एवं स्नेहाशीश प्राप्त करते रहे और इनके संस्मरण भी सन् 1975-76 ई0 में ही श्री महेशचन्द्र मिश्र 'सरल' द्वारा सम्पादित साप्ताहिक 'हरदोई समाचार' में प्रकाशित करवाकर हिन्दी-जगत को अपनी कारयित्री प्रातिभा से परिचित कराया|


२४ जुलाई सन् २०१७ को ह्रदय गति रुक जाने से डॉ अनन्त इस संसार से विदा ले चले तथा साहित्यजगत में अपनी एक अनूठी छाप छोड़ गए।  भारतीय नदियों पर किया गया उनका अनूठा कार्य उनको साहित्यकारों एवं कविगणों की स्मृति में सदैव जीवित रखेगा। 

For any further information or help or for any relevant query, feel free to contact

(अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें ):

Dr Amitanshu Mishra: +91 7505359734, 9170812760

Divyanshu Mishra: +91 9315511557

Email Id: divyanshum60@gmail.com, anantnadisahitya@gmail.com

  • Facebook
  • YouTube
bottom of page