नदी काव्य एवम् डॉ• अनन्त (स्वयम् डॉ• अनन्त के शब्दों में)
मुझे नदी काव्य लिखने की प्रेरणा सन् 1976 में पं• श्री नारायण चतुर्वेदी ‘श्रीवर‘ (भैया साहब) से उनके आवास खुर्शेदबाग लखनऊ में प्राप्त हुई थी। भारतवर्ष की राष्ट्रीय भावनात्मक समेकता (छंजपवदंस प्दजमहतंजपवद) के अतिरिक्त ‘सांस्कृतिक पुनराख्यान‘ पर्यावरण के प्रति ध्यानाकर्षण और हिन्दी कविता में अब तक गंगेतर नदियों पर आभाव की पूर्ति भी इस कार्य का प्रयोजन है। मेरे इन नदीकाव्यों एवं आत्माकथा व शोध लेखों पर अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं ने विशेषांक व धारावाहिक तथा कुछ पत्रिकाओं ने चयनित अमृतांश प्रकाशित करके मेरी सृजन धर्मिता को राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाया, जिसमें सर्वाधिक योगदान दिल्ली की ‘चक्रवाक‘ पत्रिका के संपादक आचार्य निशांतकेतु तथा सम्पादक, संरक्षक एवं प्रकाशक डाॅ• राजेन्द्रनाथ मेहरोत्रा का है। मैं इन सभी विद्वतजनों का हार्दिक आभारी हूँ, जिन्होंने मेरी नदी काव्य रचनाओं, आत्मकथाओं एवं शोध लेखों को रंगीत चित्रों से अलंकृत कर सुव्यवस्थित स्वरूप में इस विश्वस्तरीय ग्रन्थ को प्रकाशित करके मुझे विश्वव्यापी प्रतिष्ठा प्रदान की है। मुझको परितोष है कि देश भर के विद्वान सहृदयों ने मेरे इस सारस्वत अनुष्ठान को व्यापक मान्यता प्रदान की है। इस प्रकार अपने जीवन के चार दशक, जो मैंने नदी काव्य सृजन को अर्पित किये हैं, मुझे आशा है कि इन्हें पढ़कर आप सहृदयजन मुझे और प्रोत्साहित करेंगे, जिससे मैं शेष भारतीय प्रमुख नदियों विषयक भी निरन्तर लिखता रहूँ।-
(स्व•) डाॅ• अनन्तराम मिश्र 'अनन्त' (1956-2017), पूर्व प्राचार्य (कार्यवाहक), केन गोअर्स नेहरू स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गोला गोकर्णनाथ, खीरी- 262802 (उ0प्र0) भारतवर्ष
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